बिखरे मन को जोड़-जोड़ नव जीवन सफल बनाएँ ,
कर संचित समभाव सकल विभावो से राष्ट्र सजाएँ ,
दुःखी न हो कण-कण भारत का सृजन गीत हम गाएँ | दुःखी न हों.......
स्वार्थ रहित अभिमान रहित , निजकार्य निरत हो जाएँ
सबके सुख में सुख के अनुभव की रूचि हम गाएँ
व्यथित व्यथा से यदि समाजहोकरण को दूर भगाएँ
मूलछीनकार सुखी बनाएँ गीत राग का गाएँ | दुखी न हो..........
जब तक निज का भान रहेगा आएँगी बाधाएँ,
पर का भाव उदय होते ही सुख सिंधु लहराएँ ,
सजग-सजग होऐं मेरे संगी , हम मिलकर युक्ति बनाएँ ,
अटल सिंधु की गहराई में , उनको आज डुबाएं | दुखी न हो ........
आज समय की विषम घडी चहुँ और दिखाई देती हैं
जान संकुल में घृणा भाव की विष वल्लरी दिखाई देती हैं
आज जरुरत हैं हम सबको सोऐं मानस को जगाएँ ,
निज सुकर्म की प्रखर धुप से जड़ को शुष्क बनाएँ | दुखी न हो ........
जातिवाद अलगाववाद की ज्वाला धधक रही है
राष्ट्र चेतना बुझी-बुझी सी धुंधली आज हुई हैं
उसकी आभा को लौटाएँ स्वर्णिम अतीत दोहराएं दोहराएं
परंपरा आधुनितम मिश्रण से हम सजें सजाएँ | दुखी न हो .........
उमड़ पड़े गाँधी की धरा नेताजी के स्वर गूंजे
मातृ भूमि के लाल निराले सिंघनाद सा घोष करे
भगत सिंह की याद शहीदी अपने मानस से लाएँ
आजाद तिलक के मदिर चरित से कण-कण को महकाएँ | दुखी न हो........
मातृ भूमि की गोद कभी लालो के शव को न देखे
बहे कभी न खून यहाँ पर न माँए आंसू बहाएँ
खेत खेत में वैभव बरसे हर्षित फैसले लहराएं
आभाव मुक्त हो सृजित रहें और हर्ष-हर्ष हर्षाएँ | दुखी न हो .......
बहे वसंती हवा यहाँ पर शांतिशीलता आए
मदिर मलय से भीनी-भीनी या तृत्व सरलता लाए
राम राज्य की ज्योति तले श्रद्धा के हार बनाएं
पहन-पहन भारत के जन-जन को फिर से सजाएं | दुखी न हो........
यदि पथ पर मिल जाएँ गूणी गुण को हम शिस नवाएँ
यदि पथ पर मिल जाएँ श्रमि हर्षित हो गले लगाएँ ,
मैत्री का संचार करे मिल सुख दुःख सुने सुनायें,
व्यास प्रणीत शांति के मार्ग में हम चले चलाएँ |
दुखी न हो कण-कण भारत का सृजन गीत हम गायें | दुखी न हो........
-देवी दत्त दीक्षित
"व्यथित"
प्र o स्नातक शिक्षक
(संस्कृत)
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